पद्मासन का वैशिष्ट्य
प्राचीन काल से पतंजलि आदि महर्षिगणों ने आत्मसंयम और आध्यात्मिक शक्ति संग्रह करने के लिए पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन आदि की व्यवस्था की है । ये आसन योगसाधन और मन:सिद्धि के लिए एकदम आवश्यक हैं। योगीलोगों की साधनापरम्परा को मान्यता देने के लिए बद्रीनाथ और जगन्नाथ पद्मासन में बैठ योगेश्वरेश्वर के नाम से प्रख्यात हैं । '
प्राचीन काल से पतंजलि आदि महर्षिगणों ने आत्मसंयम और आध्यात्मिक शक्ति संग्रह करने के लिए पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन आदि की व्यवस्था की है । ये आसन योगसाधन और मन:सिद्धि के लिए एकदम आवश्यक हैं। योगीलोगों की साधनापरम्परा को मान्यता देने के लिए बद्रीनाथ और जगन्नाथ पद्मासन में बैठ योगेश्वरेश्वर के नाम से प्रख्यात हैं । 'यत्र योगेश्वरः कृष्णः ' ( गीता) जब भगवान् योगारूढ़ हों तब जनों की सम्यक् चित्तशुद्धि, इन्द्रियसंयम और नैतिकता का पूर्णविकास होता है। इसलिए स्कन्दपुराण में कहा गया है कि दारुब्रह्म जगन्नाथ पद्मासन में बैठकर जगत का मंगलविधान कर रहे हैं।
पद्मासनस्थितं कृष्णं दिव्यालङ्कारभूषितम् । स्वतेजसा परीवृत्तं दारुदेहेऽपि निर्मलम् ॥
( स्कन्द १९/४० )
अर्थ - आकाशवाणी कह रही है - हे नृप ! इनकी देह दारुमय होने पर भी ये पद्मासन में उपविष्ट हैं और दिव्यालंकारों से विभूषित होकर अपने निर्मल तेजपुंज द्वारा आवृत हैं । यहाँ जान लेने की बात है कि अगर कोई व्यक्ति पद्मासन में बैठा हो, तो उसके दोनों पाँव क्या दिखायी पड़ते हैं ? ठीक वैसे ही, जगन्नाथ के चरणारविन्द चर्मनेत्र के द्वारा अदृश्य हैं, परन्तु प्रेमनेत्र को दृश्य होते हैं । स्कन्द पुराण में राजा इन्द्रद्युम्न का ऐसा ही कथन है। पहण्डि विजय के पहले नरपति ने निवेदन किया - हे जगन्नाथ ! आप कृपया अपने संकुचित चरणकमलों को प्रसारित कर दीजिए, अर्थात् - भूपृष्ठ पर पाँव रखकर रथ पर विराजिये । अगणित भक्तजन आपके दर्शनद्वारा अपने जीवन को कृतार्थ करेंगे |
अवतारः कृतो ह्येष लोकानुग्रहकाम्यया ।
तदेहि भगवन् प्रीत्या चरणं न्यस्य भूतले ।
(स्कन्द ३३/३९)
अर्थात् - हे देव ! आपने लोगों पर कृपा करने की इच्छा से यह अवतार धारण किया है । अतएव हे भगवन् ! आप प्रीतिपूर्वक धरती पर चरण धरकर पधारिये । ऊपर के प्रसंग से पता चलता है कि जगन्नाथ जब पद्मासन में होते हैं तब उनके चरण संकुचित रहते हैं । परन्तु 'पहण्डि विजय' के समय वे प्रसारित हो जाते हैं।