इस तरह करें जीवन व्यतीत

ध्यान कोई प्रयास या खोज नहीं है। यह हमारा मूल स्वभाव है। भूख लगना हमारे शरीर का स्वभाव है। इस भूख को साधने का माध्यम योग है। उसी प्रकार मन की भूख को साधने का माध्यम ध्यान है। ध्यान का लक्ष्य है समाधि, जो आत्मा का स्वभाव है। वह उसकी भूख है। अपने मूल की खोज अपने स्वभाव का साक्षात करना ही ध्यान है।

इस तरह करें जीवन व्यतीत

हम एक ही ढंग से जीते हैं और जीते चले जाते हैं। एक तरीके से सोचने, चलने और बोलने की हमारी आदत ने हमारी सृजनात्मकता को खत्म कर दिया है। इस जगत में कोई रस नहीं दिखता है। जब हम मन के अनुसार चलेंगे, तो अनुकरण करेंगे। जब मन से विद्रोह कर हम हृदय की सुनेंगे, तब हम ज्यादा सजग होंगे। बोधपूर्ण होने पर जीवन में आनंद और सृजन की संभावना बढ़ जाएगी। सजग होना और बोधपूर्ण कार्य करना ही ध्यान है।

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ध्यान कोई प्रयास या खोज नहीं है। यह हमारा मूल स्वभाव है। भूख लगना हमारे शरीर का स्वभाव है। इस भूख को साधने का माध्यम योग है। उसी प्रकार मन की भूख को साधने का माध्यम ध्यान है। ध्यान का लक्ष्य है समाधि, जो आत्मा का स्वभाव है। वह उसकी भूख है। अपने मूल की खोज अपने स्वभाव का साक्षात करना ही ध्यान है। खुद को देखने, महसूस करने और अपने साथ संवाद करने का एकमेव तरीका है ध्यान। जब व्यक्ति जन्म लेता है, तब योगी की भांति ध्यान में रहता है। इस जगत में आने के साथ पीठ ठोककर यह बताया जाता है कि अब तुम संसार में आ गए। व्यक्ति जन्म के पल से समाधि को छोड़ता है और संसार में प्रवेश करता है।



एक बार संसार में आ गया, फिर शरीर को भूख और प्यास लगती है। फिर वासना के साथ इंद्रियां भी जुड़ने लगती हैं और क्रियाशील हो जाती हैं। इसके बाद यात्रा शुरू हो जाती है। बाहर की यात्रा है। इस बहिर्गामी यात्रा को ध्यान के माध्यम से ही अंतर्यात्रा में ले जाया जाता है। ध्यान में कुछ करने की जरूरत नहीं है। यह भ्रम व्याप्त है कि ध्यान करना है। इसे समझने के लिए बीज का उदाहरण अच्छा है। बीज को अंकुर बनने के लिए कुछ नहीं करना होता है। वह अक्रिया की स्थिति में बीज से अंकुर की यात्रा करता है। अंकुर से पौधा और पौधे से पेड़ बनना किसी क्रिया के परिणामस्वरूप नहीं होता है। पेड़ में फूल लगना और फल का विकसित होना भी प्रयास का परिणाम नहीं है।

इसी प्रकार जीवन में नींद, मृत्यु, सांस पर हमारा कोई वश नहीं है। खाना खाने के बाद भोजन का पाचन हमारी किसी कोशिश के कारण नहीं होता। उसी प्रकार हमारी इच्छा से नींद नहीं आती है। जीवन की अनेक क्रिया स्वयं ही होती है। यह प्राकृतिक है। यह स्वाभाविक घटित होती है। इसके लिए प्रयत्न करने से कोई इच्छित परिणाम मिल जाएगा, यह कहना कठिन है। हमारी क्रिया का परिणाम अशांति है, लेकिन शांति हमारी स्वाभाविक प्रकृति है। इसी प्रकार प्रेम क्रिया नहीं है। यह स्वभाव है।