नींद क्या है।
रात की नींद को “भूताधात्री” कहा जाता है, जो की एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है, ‘संपूर्ण सृष्टि की माता’। जिस प्रकार मां अपनी संतान का पालन पोषण करती है, उसी प्रकार सृष्टि नींद की स्थिति में विश्राम देकर सब को पोषित करती है। हमारी दैनिक दिनचर्या में नींद एक प्राकृतिक और आवश्यक भाग है, यह हमको उर्जा प्रदान करती है, जो कि स्वस्थ जीवन जीने के लिए आव्यशक है। गहरी व सही मात्रा में ली गई नींद हमारे मन व शरीर को संपूर्ण विश्राम देती है जिससे हम को ताजगी मिलती है और हम ऊर्जावान तथा प्रसन्न हो जाते हैं।
नींद क्या है।
रात की नींद को “भूताधात्री” कहा जाता है, जो की एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है, ‘संपूर्ण सृष्टि की माता’। जिस प्रकार मां अपनी संतान का पालन पोषण करती है, उसी प्रकार सृष्टि नींद की स्थिति में विश्राम देकर सब को पोषित करती है। हमारी दैनिक दिनचर्या में नींद एक प्राकृतिक और आवश्यक भाग है, यह हमको उर्जा प्रदान करती है, जो कि स्वस्थ जीवन जीने के लिए आव्यशक है। गहरी व सही मात्रा में ली गई नींद हमारे मन व शरीर को संपूर्ण विश्राम देती है जिससे हम को ताजगी मिलती है और हम ऊर्जावान तथा प्रसन्न हो जाते हैं।
आधी अधूरी नींद (आवश्यकता से अधिक, कम या परेशानी वाली नींद) के कारण दुख, दुर्बलता, कमजोरी, सुस्ती, लघु जीवन अवधि आदि कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती है।
आईये निद्रा के बारे में कुछ और विस्तार से चर्चा करते हैं। इस लेख में हम यह भी जानेंगे कि अनिद्रा का मुख्य कारण क्या है? हम यह भी जानेंगे की रात को अच्छी नींद लेने के लिए हमें कोन से नियम व उपाय करने चाहिए।
नींद का ७ भागों में वर्गीकरण ।
तमोभाव - तमस के कारण नींद
श्लेष्मासमूदभवा - शरीर में 'कफ' बढ़ जाने के कारण नींद आना
मना: शमा जानया - मानसिक थकान के कारण नींद
शरीर: शरमा जानया - शारीरिक थकान के कारण नींद
अग्नटूकी - बाहरी कारणों के कारण आने वाली नींद। जैसे दुर्घटना, विषाक्त पदार्थ आदि।
व्याध्यानूवर्तनी - बीमारी के कारण आने वाली नींद। जैसे: बुखार, भयंकर डायरिया, नशे की स्थिति, मधुमेह आदि।
रात्रिसवाभवा - रात की प्राकृतिक रुप से नींद आना (मनोवैज्ञानिक)
इन सब प्रकारों में से केवल रात्रिसवाभवा ही सामान्य नींद है जिसको ‘भूताधात्री’ कहते हैं।
तामसिक व्यक्ति दिन और रात दोनों समय सोता है।
राजसिक व्यक्ति या तो दिन में सोता है या रात में।
सात्विक व्यक्ति बहुत कम सोता है और केवल रात में सोता है।
कोनसा समय सोने के लिए उत्तम है? ।
समय को चार यमों में विभाजित किया गया है। (एक यम 3 घंटे के बराबर है)
पहला और आखरी यम सूरज डूबने के 3 घंटे बाद और ब्रह्म महूर्त से 3 घंटे पहले। (प्रातः 3:00 से 6:00 और सायं: 6:30 से 9:00 बजे तक) यह समय ध्यान करने के लिए, पढ़ने, ज्ञान प्राप्त करने के लिए, तथा प्रार्थना करने के लिए उत्तम माना जाता है।
दूसरा और तीसरा यम यह (रात्रि 9:00 बजे से प्रातः 3:00 बजे तक) सोने के लिए यह सबसे उत्तम समय है।
अच्छी नींद के लिए
सोने से पहले पैरों को धो लें। तलवों की मालिश करना भी अच्छा है।
सोते समय ढीले व आरामदायक वस्त्र पहनें जो कि शरीर में हवा का संचार करें।
सोने से पहले लंबी गहरी सांसे ले तथा ध्यान अवश्य करें।
पैरों को दक्षिण दिशा की ओर करके न सोए तथा गुरु, भगवान की मूर्ति, देवी-देवता के चित्र, लोग, वस्तुएं तथा सम्मानित स्थानों की ओर पैर न करें।
रसोई घर में न सोए तथा शयन कक्ष के भीतर खाने पीने की वस्तुएं न रखें।
ध्यान रखें कि शयनकक्ष के भीतर ताजी बहती हुई हवा आए।
कभी भी अंधेरे व गीले कमरे में न सोए।
सिर को थोड़ा ऊपर रखें’ पतला तकिया लगाएं।
गर्मियों में छत पर य खुले आकाश के नीचे सो सकते हैं परंतु सर्दियों या वर्षा ऋतु में नहीं।
सूरज की सीधी रोशनी में सोना ठीक नहीं है हालांकि चांदनी रात में सोना ठीक है यदि बाकी सारी परिस्थितियां अनुकूल हो तो।
दिन में सोना
आयुर्वेद के अनुसार दोपहर में सोने से शरीर में कफ बढ़ जाता है, रक्त संचार में रुकावट आती है, जिसके कारण सिर भारी हो जाता है, सांस लेने में कठिनाई होती है। उनींदापन, ज़ुकाम खांसी, सिरदर्द, पाचन विकार, छाले, खुजली, गले की तकलीफ, खून की कमी आदि बढ़ जाते है।
दोपहर में सोना केवल इनके लिए उपयुक्त है।
दोपहर के भोजन के एकदम बाद लेटना नहीं चाहिए। हालांकि बिना सोए लेटने की इच्छा अवश्य होती है। किसी भी समय का भारी खाना खाने के बाद थोड़ी देर विश्राम करना सेहत के लिए अच्छा है। परंतु थोड़ी सी नींद बैठे बैठे (5 से 10 मिनट) लेना ठीक है। दोपहर के भोजन के बाद- इससे वात व कफ में संतुलन आता है।
बच्चे तथा बूढ़े लोग
जो रात में नौकरी करके आते हैं।
जो कि कठिन शारीरिक य मानसिक कार्य करके आते हैं।
जो कि किसी प्रकार की पीड़ा, दर्द, चोट या टीबी से पीड़ित हैं।
जिनको अधिक प्यास लगना, डायरिया, पेट दर्द, सांस की तकलीफ, हिचकियां, मासिक धर्म के समय दर्द हो।
जो गुस्से, डर और उदासी से घिरा हो।
लंबी यात्रा के बाद, बहुत अधिक वजन उठाने के बाद, अधिक संभोग करने के बाद, अधिक मात्रा में शराब पीने के बाद, लंबे समय तक गाना गाने या पढ़ाई करने के बाद।
पंचकर्मा चिकित्सा (उन्मूलन) के बाद।
अत्यधिक गर्मी के मौसम में, जिस समय तापमान सबसे अधिक होता है, उस समय थोड़ी देर नींद लेना ठीक होता है।
दोपहर में सोना किस के लिए मना है
कफ प्रकृति के व्यक्तियों के लिए।
कफ असंतुलन के समय
अधिक मोटापे य विकार के समय
यदि शरीर में विषैले तत्त्व की मात्रा अधिक हो तो भी नहीं सोना चाहिए।
अच्छी नींद के लिए और उपाय
पूरी तरह ढका हुआ सुंदर बिस्तर
कमरे में मधुर संगीत तथा भीनी खुशबू
साफ, शांत, खुला तथा आरामदायक कमरा
समय से सोने व जागने की आदत
तेल से अभियंगा मालिश करके स्वयं को आराम दें
पाउडर से मालिश (उद्ववर्तना)
शिरोधारा
नेत्र तर्पण (आंखों की अनेक बीमारियों के लिए बहुत लाभदायक उपाय)
आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करके व्यक्तिगत स्तर पर अच्छी नींद के लिए प्राकृतिक हर्बल तैयारी भी की जाती है।
अनिद्रा के मुख्य कारण
सत्व तत्व को बढ़ जाने पर
बुढ़ापा
डर,तनाव, गुस्सा
आरामदायक बिस्तर ना होना, समय और स्थान ठीक ना होना
धूम्रपान
शरीर में वात बढ़ जाना
वात्त प्रवृत्ति की अधिकता
अधिक परिश्रम
व्रत
वात का असंतुलन और अन्य शारीरिक रोग
अधिक समय तक अनिद्रा की स्थिति के कारण पूरे शरीर में सूखापन आ जाता है। जिसके कारण भूख नहीं लगती तथा खाना पचाने में भी अड़चन होती है। लोग कमजोरी महसूस करते हैं तथा शरीर में ऊर्जा की कमी महसूस होती है।
सामान्य रूप से वात् प्रकृति के लोग पांच से 6 घंटे की नींद से तृप्त हो जाते हैं। पित्त प्रकृति के लोग गहरी व बिना रुकावट की 6-7 घंटे की नींद से स्वस्थ महसूस करते हैं। कफ प्रकृति के लोग 7 से 8 घंटे सोना पसंद करते हैं। क्योंकि उनकी प्रकृति में ही 8 घंटे य उससे अधिक सोना उत्तम होता है, परंतु इतना अधिक सोना उचित नहीं है।
आयुर्वेद के अनुसार एक सामान्य, व्यसक, स्वस्थ आदमी के लिए 6 घंटे की नींद पर्याप्त हैं। तो इसलिए पित्त और कफ प्रकृति के व्यक्ति 6 घंटे की नींद के आदी हो तो स्वस्थ रहते हैं।
व्यक्तिगत रोजगार के अनुरूप नींद की अव्यशकताएँ अलग-अलग होती हैं। नींद की मात्रा व्यक्तिगत तौर पर व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक कार्यवाही पर आधारित होती है।