पीपलकी पूजा शनिदेब से मुक्ति

सूर्य देब अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जिंदा जलता हुआ देख कर बहुत दुख करते हैं और ब्रह्मा जी से उसको बचाने हेतु प्रार्थना करते हैं | ब्रह्मा जी स्वयं सन्मुख पधारे और शनि देव को छोड़ने की प्रार्थना की| इस दुष्ट की वजह से मेरे पिताजी मरे माँताजी की अकाल मृत्यु हुई मेरे पिता की मृत्यु होने पर मेरी मां सती हो गई और मैं इतनी छोटी सी उम्र में भूखा प्यासा इस जंगल में तड़पता रहा | मैं इसको नहीं छोड़ने वाला | मैं इसको किसी भी कीमत पर नहीं छोडूंगा |ब्रह्मा जी ने एक बदले बदले दो बर और देने की बात कही | कहा कि जो हो गया बात को भूल कर इसको छोड़ दो बहुत अनुनय विनय पर उनको ब्रह्मा जी के ऊपर दया आई | और कहां ठीक है आप हमें वरदान दो | कौन से दो वरदान मांगे, में जिस पिपल की पेड़ में पला बढ़ा जो भी प्रातःकाल इस पेड़ में जल चढ़ाएगा उसे सनी की दसा नहीं लगेगी, कोई असर सनी की नहीं होना चाहिए| ब्रह्मा जी ने बोले तथास्तु | फिर क्या कहते हैं पांच वर्ष के बालक बालिका की कुंडली में शनि का स्थान ही नहीं होना चाहिए  |जिससे मेरे जैसा दसा किसीको न मिले |  

पीपलकी पूजा शनिदेब से मुक्ति

शनि देब भी अन्य ग्रहों की तरह एक ग्रह मात्र हैं | सूर्य पुत्र शनि की साढ़ेसाती और उनकी महादशा से सभी लोग घबराते हैं | सनी दसा में हर व्यक्ति सही से उपाय करें तो शनि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते | सनी सिर्फ दो लोगों से घबराते हैं ,डरते हैं उनमें से प्रथम हैं संकटमोचक हनुमान जी और दूसरा वह व्यक्ति जो शाकाहारी सदाचारी और रोज सूर्योदय से पहले पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने वाला हैं | एक छोटी सी प्रामाणिक कथा जो इस प्रकार है |

आपने ऋषि दधीचि के बारे में सुना होगा, जिनकी हड्डियों को देबताओने  दान में मांगा था ,और उन्होंने लोक कल्याण के लिए अपने शरीर को गायों से चटबा  कर अपनी जिंदा हड्डियां दान कर दी थी, जिससे इंद्र का वज्र नामक अस्त्र बना और जिससे असुर बृत्रासुर का संघार हुआ | देबाताओ ने उनकी अंतिम इच्छा पूछी तो महर्षि बोले कि मैं तो हमेशा प्रभु की तपस्या करता रहा, इसलिए कभी किसी तीर्थ में स्नान नहीं किया मेरी अंतिम इच्छा है कि मैं मरने से पहले सारे तीर्थों में स्नान कर लूँ  |

 अब सारे तीर्थ यात्रा कराना बहुत समय लगने वाला था अतः इंद्र पहुंचा भगवान नारायण की शरण में और उनको महर्षि दधीचि की अंतिम इच्छा के बारे में बताया| विष्णु जी बोले कि यह तो नियम है कि किसी भी हालत में मरने वाले की अंतिम इच्छा जरूर पूरी करनी चाहीये | लेकिन प्रभु अगर हम उनके तीर्थ यात्रा वाली इच्छा को पूरी कराने लगे तो बरसो लग जाएंगे | इतना समय कहां है | भगवान विष्णु ने ब्रह्मा आदि देवताओं को बताया कि आप सभी मिलकर उसी जगह गहरा कुंड बनाओ और गंगा, यमुना, घाघरा ,सरयू ,सरस्वती अलकनंदा ,गोमती, कावेरी ,नर्मदा, ब्रह्मपुत्र आदि नदियों का आवाहन करो और उनसे थोड़ा थोड़ा जल मांग कर उसी कुंड में डालो |जाओ सभी तीर्थों का आवाहन करके उनसे भी जल मांगो और कुंड में डालो उसके बाद फिर दधीचि जी को स्नान करा कर आगे बढ़ कर अपना कार्यक्रम पूरा करो |

यो  कुंड आज भी उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के मिश्रित  कस्बे में स्थित कुंड का नाम दधीच कुंड मिश्रित  तीर्थ हो गया अर्थात विश्व के सभी तीर्थों का जल वाला तीर्थ | स्थान पर हर साल लाखों लोग स्थान पर परिक्रमा करते रहते हैं |जब दधीचिजी ने प्राणायाम के द्वारा अपनी आत्मा को ब्रह्मांड में चढ़ा लिया और देवताओं ने उनके शरीर से मांस  के लोड़े हटाकर हड्डी निकालकर हथियार बना लिए | दधीचि जी की मृत्यु के बाद उनके बचे हुए मांस पिंड आदि का अंतिम संस्कार हो रहा था तो उनकी महान पतिव्रता नारी जिनकी गोद में तीन वर्ष का बालक था उसको पीपल के पेड़ के खोले  में बैठाकर वह पति के संग सती हो गई |

स्वार्थी देवताओं ने उस नन्हीसी जान अनाथ बालक का कोई जत्न नहीं लिया | विशाल पीपल वृक्ष में तीन वर्ष के बालक बैठकर तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा | जब कोई वस्तु नहीं मिली तो गुटर में गिरे पीपल के छोटे-छोटे दूर खाकर बड़ा होने लगा |कालांतर में पीपल के पत्तों और फलों को खा कर बालक जिन्दा रहा | अकेला रहता था | वही पीपल का पेड़ के तने में जो खोली बना था शो जाता था उसका वही घर था  |एक गौ माता जो अपने बच्चे से थोड़ा सा दूध बचा कर लेती थी और वह आकर उस बालक को अपना दूध पिला दी थी और उस तरह उसका जीवन किसी प्रकार सुरक्षित रहा |

एक दिन देव ऋषि नारद वहां से गुजर रहे थे पीपल में छोटा सा बालक है, और यहां पर बैठा हुआ है | पूछते हैं कि बालक तुम कौन हो  | आपके माता-पिता कौन है ?बालक तो बोलना जानता नहीं था, तीन साल का था |अब छे साल का हो गया  |लेकिन अब उसको बोलना तो किसी ने ही सिखाया | फिर भी थोड़ा बोल सकता था  |उसी में बोलता है कि मैं कौन हूं मैं नहीं जानता | अपने तपोबल से ध्यान से देखने पर उनको सब कुछ सामने दिख गया  |नारद ने आश्चर्यचकित होकर बताया कि हे बालक तुम तो महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पाई थी | तुम्हारे पिता दधीचि की अकाल मृत्यु हो गई थी | बालक बोलता है कि ऋषि देव मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था | नारद जी कहते हैं क्योंकि आपके पिता के ऊपर शनि देव की महादशा थी | बालक पूछता है फिर मेरे ऊपर आई विपत्ति का कारण क्या था | तो नारद फिर कहते हैं आपके ऊपर आई विपत्ति के कारण भी शनिदेव ही हैं  |उन की महादशा आपके ऊपर भी थी |इतना बता कर देव ऋषि नारद ने पीपल के पत्तों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पीपलाद रखा और उसे दीक्षित किया | अपना शिष्य बना लिया| उनको ब्रह्मा जी को खुश करने वाला एक मंत्र बताया और कहां की मंत्र का जाप करके आप ब्रह्मा जी को खुश करो |

 नारद जी के जाने के बाद बालकने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया | ब्रह्मा जी ने संतुस्ट होकर बार माँगनेको कहा | हमारी  दृष्टि मात्र से प्राणी जल जाना चाहिए यह शक्ति हमें दे दो | ब्रह्मा जी से बर मिल गया और बालक शनिदेव का आवाहन करने लगा |

अपने घमंड के साथ शनिदेव सोचे मेरी पूजा करके मेरा मान कर रहा है | लोग भगवान शिव और नारायण की जिस तरह पूजा करते हैँ , बालक मेरी पूजा करके मेरा आवाहन कर रहा है |मेरी जबरदस्ती की महादशा से उसके पिता की मौत हुई थी उस पर पश्चाताप की जगह ऐसा आगे और लोगों पर करूंगा  यह सोचते हुए प्रकट हुए शनिदेव और बोले हैं बालक आंखें खोलो मैं सूर्यपुत्र शनिदेव,आपके सामने, अपना अभिप्राय बताओ | शनि देव को अपने सामने पाकर बालक अत्यंत क्रुद्ध हो गया और आंखें खोल कर क्रोध में शनि देव को खत्म करना शुरू कर दिया| उनके पूरे शरीर में आग लग गई और जलने लगे | ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया सूर्य पुत्र शनि की रक्षा में सारे देवता गई किंतु यह क्या जो भी देवता बचाने को आता है देखते ही जलने लगता है |

सूर्य देब अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जिंदा जलता हुआ देख कर बहुत दुख करते हैं और ब्रह्मा जी से उसको बचाने हेतु प्रार्थना करते हैं | ब्रह्मा जी स्वयं सन्मुख पधारे और शनि देव को छोड़ने की प्रार्थना की| इस दुष्ट की वजह से मेरे पिताजी मरे माँताजी की अकाल मृत्यु हुई मेरे पिता की मृत्यु होने पर मेरी मां सती हो गई और मैं इतनी छोटी सी उम्र में भूखा प्यासा इस जंगल में तड़पता रहा | मैं इसको नहीं छोड़ने वाला | मैं इसको किसी भी कीमत पर नहीं छोडूंगा |

 ब्रह्मा जी ने एक बदले बदले दो बर और देने की बात कही | कहा कि जो हो गया बात को भूल कर इसको छोड़ दो बहुत अनुनय विनय पर उनको ब्रह्मा जी के ऊपर दया आई | और कहां ठीक है आप हमें वरदान दो | कौन से दो वरदान मांगे, में जिस पिपल की पेड़ में पला बढ़ा जो भी प्रातःकाल इस पेड़ में जल चढ़ाएगा उसे सनी की दसा नहीं लगेगी, कोई असर सनी की नहीं होना चाहिए| ब्रह्मा जी ने बोले तथास्तु | फिर क्या कहते हैं पांच वर्ष के बालक बालिका की कुंडली में शनि का स्थान ही नहीं होना चाहिए  |जिससे मेरे जैसा दसा किसीको न मिले |