मन्त्रसिद्धि
कुछ दिनों पहले एक महोदयने यह शङ्का की थी कि ' श्रीरामायणमें भरद्वाज मुनिके द्वारा सदलबल भरतजीके आतिथ्यमें जो विशाल सामग्रियोंकी व्यवस्थाका वर्णन है, वह कवि-कल्पना है, या वास्तवमें उसमें कोई तथ्य है।' उन्हें उस समय शास्त्रोंमें विश्वास करनेकी तथा मन्त्र एवं तपसे उत्पन्न सिद्धियोंकी बात लिख दी गयी थी। ।
कुछ दिनों पहले एक महोदयने यह शङ्का की थी कि ' श्रीरामायणमें भरद्वाज मुनिके द्वारा सदलबल भरतजीके आतिथ्यमें जो विशाल सामग्रियोंकी व्यवस्थाका वर्णन है, वह कवि-कल्पना है, या वास्तवमें उसमें कोई तथ्य है।' उन्हें उस समय शास्त्रोंमें विश्वास करनेकी तथा मन्त्र एवं तपसे उत्पन्न सिद्धियोंकी बात लिख दी गयी थी। ।
कुछ समय पहले काशीके स्वामीजी श्रीविशुद्धानन्दजीके भी ऐसे ही कुछ प्रयोग देखे थे, जिनको वे 'सूर्य विज्ञान' के द्वारा सम्पन्न बतलाते थे। इन सब चीजोंको प्रत्यक्ष देखकर मन्त्र - जप और तप: सिद्धिपर विश्वास करना ही पड़ता है । आधुनिक विज्ञान हमारे पूर्वज ऋषि मुनियोंकी मन्त्र - शक्तिके सामने अभी सर्वथा नगण्य है - यह प्राचीन विमान-निर्माण, अस्त्र - शक्ति, मन्त्रशक्ति आदिके वर्णनसे सिद्ध है यह सत्य है कि आजकल धूर्तता बढ़ गयी है और अधिकांश लोग चमत्कार दिखाकर, सोना आदि बना देनेका विश्वास दिलाकर लोगोंको ठगते एवं धोखा देते हैं, उनसे अवश्य सावधान रहना चाहिये। धोखेबाजोंकी नीच करतूतें लोगोंमें अवश्य अविश्वास पैदा
करती हैं; परंतु उससे 'सत्य'का नाश नहीं होता ।
वस्तुतः उनका वह धोखा भी — सिद्धियोंकी सत्यताके आधारपर ही चलता है। मन्त्रसिद्धिसे देवता प्रत्यक्ष आज भी हो सकता है और सिद्धियाँ भी प्राप्त हो सकती हैं । यदि निम्नलिखित घटनाओंमें कोई धोखा नहीं साबित होता तो मन्त्रसिद्धिके ये प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
मन्त्र - सिद्धिका अद्भुत चमत्कार बिरला हाउस, नयी दिल्लीसे मास्टर श्रीरामजी लिखते हैं
दिल्लीमें एक वैष्णव साधु आये हुए थे, जिनका नाम बाबा गोपालदास है। वे यहाँपर आर्यनिवास नं० १, डाक्टर लेन पर ठहरे थे । छतके ऊपर एक गोल-सा छोटा कमरा है, उसीमें वे रहते थे। उन्होंने गोपालका एक चित्र काष्ठकी चौकीपर रख छोड़ा था। उस चित्रके चारों तरफ कनेरके पुष्प चढ़ाये हुए रक्खे रहते थे। गोपालदास बाबा उस चौकीके पास ही एक दरीपर बैठे तुलसीकी माला फेरते थे। जो लोग उनके पास जाते, वे भी उसी दरीपर बैठ जाते थे। उनके पास जानेवालोंको प्रसाद देनेके लिये बाबाजी ईंटके छोटे-छोटे टुकड़े अनुमान ४, ५ तोले वजनके एक हरे केलेके टुकड़ेमें गोपालकी मूर्तिके सामने आधा मिनट रखकर उठा लेते थे, तो ईंटके टुकड़े सफेद मिश्रीके टुकड़ोंमें बदल जाते थे और वे इन मिश्रीके टुकड़ोंको उन लोगोंको दे देते थे, जो उनके दर्शनके लिये जाते। कभी-कभी ईंटका टुकड़ा कलाकंदमें बदल जाता था। यह अद्भुत परिवर्तन कैसे हो जाता है ? सो तो वह बाबाजी ही जानते हैं, और किसीको पता चला नहीं है। विज्ञानवेत्ता इस कारणको ढूँढ़ निकालें तो दूसरी बात है। उक्त बाबाजीके पास जर्मन - राजदूत, जापानी- राजदूत (संसदके अध्यक्ष) श्रीमावलङ्कर, श्रीसत्यनारायण सिंह, रायबहादुर लक्ष्मीकान्त मिश्र आदि गये थे। इनको भी इसी प्रकारका प्रसाद दिया गया था। जर्मन राजदूतके साथ एक जर्मन महाशय भी थे। उन्होंने तो यह चमत्कार देखकर बाबाजीसे अपना शिष्य बना लेनेकी प्रार्थना भी की।
इन दो प्रकारके चमत्कारोंके अतिरिक्त तीन चमत्कार विशेष उल्लेखनीय हैं। पहला चमत्कार तो यह है कि श्रीजुगलकिशोरजी बिरलाने एक ताँबेकी चमचीको एक केलेके हरे पत्तेमें लपेटकरअपने हाथमें लिया और बाबाजीके कहनेके अनुसार श्रीबिरलाजी सूर्यके सामने खड़े हो गये। बाबाजी भी पासमें खड़े कुछ मन्त्र जपते रहे। दो-तीन मिनट बाद ही चमची निकाली गयी तो सोनेकी बन गयी थी। अभीतक वह चमची श्रीबिरलाजीके मुनीम डालूरामजीके पास उसी आर्यभवनमें रक्खी हुई हैं।
दूसरा चमत्कार यह हुआ कि इस मिश्रीके प्रसादका वृत्तान्त सुनकर एक महाशयने बाबाजीके पास जानेवालोंमेंसे किसीको यह बात कह दी कि हम तो बाबाजीकी मन्त्रसिद्धि तब मानें जब कि वे पूरी - की पूरी एक नंबरी ईंटको मिश्रीकी ईंट बना दें। ऐसी बात बाबाजीको सुनायी गयी तो बाबाजीने झट कह दिया कि गोपालजीकी कृपासे मिट्टीकी ईंटके टुकड़े मिश्रीके टुकड़े बन जाते हैं तो पूरी मिट्टीकी ईंटका मिश्रीकी ईंट बन जाना कौन बड़ी बात है। अतएव १८ सितम्बर बृहस्पतिवारको रात्रिके ८ बजे श्रीबिरलाजीके तथा कई सज्जनोंके सामने एक नंबरी ईंट मँगायी गयी और उसको धो-पोंछकर एक सज्जनके हाथसे काष्ठकी एक चौकीपर वह ईंट रखवा दी गयी तथा एक केलेके पत्तेसे उस ईंटको ढक दिया गया । तीन-चार मिनटतक बाबाजी कुछ मन्त्र जपते रहे। फिर उस ईंटको उठाया गया तो केलेके पत्तेमेंसे एकदम श्वेत मिश्रीकी ईंट निकली। वह ईंट ( बिरला -हाउस, दिल्लीमें) श्रीजुगलकिशोरजी बिरलाके पास रक्खी हुई है, सो ये दोनों चीजें तो मौजूद हैं, कोई भी देख सकता है
तीसरी अद्भुत घटना तो मैंने स्वयं अपनी आँखोंसे देखी है। उस समय बाबू जुगलकिशोरजी बिरला, गायनाचार्य पण्डित रमेशजी ठाकुर तथा 'नवनीत' के संचालक श्री श्रीगोपालजी नेवटिया उपस्थित थे । अनुमान दिनके दस बजे होंगे। उस समय किसीने बाबाजीसे कहा कि 'एक दिन आपने पानीसे दूध बनाया था, परंतु उस दिन प्रभुदयालजी हिम्मतसिंहका, माधवप्रसादजी बिरला आदि जो सज्जन देखते थे, उनको संतोष नहीं हुआ था। सो बाबाजी इस प्रकारसे दूध बनायें कि किसीको भी संदेह न रहे। इसपर बाबाजी बहुत हँसे और बोले, उन लोगोंकी श्रद्धाकी स्यात्, परीक्षा की गयी होगी। इसके बाद बाबाजीने कहा, 'अच्छा एक काठका पट्टा बाहर रक्खो और उसपर यह पानीकी बाल्टी रख दो।' बाबाजीने जैसा कहा वैसा ही किया गया। बाबाजीने अपनी चद्दर, जो ओढ़ रखी थी, वह भी उतार दी और एक कौपीन तथा उसपर एक तौलिया ही रक्खा और स्वयं दूर खड़े हो गये तथा सबको कह दिया कि उस बाल्टीको एक दफे फिर अपनी आँखोंसे देख लो। सबने वैसा ही किया । बाबाजीने एक आदमीसे कहा कि 'तुम इस पट्टेपर बाल्टीके पास बैठकर ओम्का जप करते रहो। फिर बाबाजी उस बाल्टीके पास गये और उसमेंसे कटोरी पानीकी भरी और सबको वह पानी दिया गया । सबने कहा, यह तो पानी ही हैं। फिर बाबाजी श्रीगोपालजीकी मूर्तिके पास जा बैठे और वह बाल्टी अपने पास मँगा ली। बाल्टी गमछेसे ढक दी गयी और एक लाल फूल, जो गोपालजीकी मूर्तिपर चढ़ा हुआ था, अपने हाथसे बाल्टीमें डाल दिया। उसके पश्चात् जब गमछा हटाया गया, तब एकदम सफेद दूध देखनेमें आया। सबको एक-एक कटोरी दूध दिया गया। शेष दूध बिरला - हाउस पहुँचाया गया, जो अनुमानतः ढाई सेर था। वह दूध गरम करके जमाया गया और दूसरे दिन उसमेंसे मक्खन निकाला गया।
बाबाजीकी ऐसी ही अनेक सिद्धियोंका हाल गोस्वामी गणेशदत्तजी सुनाया करते हैं; परंतु यहाँपर तो संक्षेपमें इतना ही उल्लेख किया गया है। इन कुछ आश्चर्यजनक बातोंको देखकर मनमें आया कि विज्ञानवेत्ताओंसे विनयपूर्वक निवेदन करूँ कि आर्य ऋषियों और मुनियोंद्वारा सम्मानित पातञ्जल योगदर्शनके सूत्र ‘जन्मौषधिमन्त्रतपः समाधिजाः सिद्धयः' में एक मन्त्रसिद्धि भी मानी गयी है। मन्त्रसिद्धिका चमत्कार देखनेका अबतक मुझे कोई अवसर नहीं मिला था, परंतु ये कुछ चमत्कार अपनी आँखोंसे देखकर मुझे मन्त्रसिद्धिमें पूर्णतया विश्वास हो गया है। साथ ही एक प्रकारका विस्मय भी उत्पन्न हो गया है। उसी विस्मयके कारण आधुनिक विज्ञानवेत्ताओंसे यह निवेदन करनेकी प्रबल इच्छा उत्पन्न हुई है कि आप पातञ्जल योगदर्शनके उपर्युक्त मन्त्रमें वर्णित मन्त्रसिद्धिको मानते हैं या नहीं? और यदि नहीं मानते हैं तो आप भी ऐसे ही चमत्कार अपने विज्ञानद्वारा करके दिखायें और यदि आप दिखानेमें समर्थ नहीं हैं तो आप अपने अभिमानको त्यागकर भारतीय आर्यशास्त्रों में बतायी हुई मन्त्रसिद्धिको सहर्ष स्वीकार कर लें; क्योंकि आप तो अपनेको बराबर ही सत्यका पुजारी घोषित करते रहते हैं । आशा है बुद्धिमान् विज्ञानवेत्ता इन रहस्योंकी जाँच -- -पड़ताल करके एक निर्णयपर पहुँचेंगे। केवल यह कह देनेसे कि 'यह सब निराधार है' काम नहीं चलेगा। किसी वस्तुको उसकी पूरी जाँच- -पड़ताल किये बिना ही निराधार कह देना तो बहुत आसान बात है। जो अपनेको सत्यका पुजारी कहता हो, उसका कर्त्तव्य है कि या तो इन घटनाओंकी जड़में कोई धूर्तता या वञ्चना हो तो उसको साबित कर दे या यह स्वीकार कर ले कि हमको विज्ञानके द्वारा तो इनका कोई रहस्य मालूम नहीं हो सकता, इसलिये योगदर्शनके उस सूत्रमें वर्णित मन्त्रसिद्धिको ही मानना न्यायसंगत होगा।