श्री कृष्ण का मैनेजमेंट : जीवन जीने की कला सीखें मुरलीधर से
सचमुच श्रीकृष्ण से सीख लेना बहुत ही मुश्किल है। जीवन को बेहतर तरीके से जीना तो कोई श्रीकृष्ण से सीखें ।श्रीकृष्ण कहते हैं कि साधारण मानव बनना बहुत ही असाधारण कृत्य है। आपको अपने कर्मों को इस तरह मैनेज करना है कि जीवन सुंदर बन जाए। तो आओ जानते हैं श्रीकृष्ण से 10 मैनेजमेंट टिप्स।
सचमुच श्रीकृष्ण से सीख लेना बहुत ही मुश्किल है। जीवन को बेहतर तरीके से जीना तो कोई श्रीकृष्ण से सीखें ।श्रीकृष्ण कहते हैं कि साधारण मानव बनना बहुत ही असाधारण कृत्य है। आपको अपने कर्मों को इस तरह मैनेज करना है कि जीवन सुंदर बन जाए। तो आओ जानते हैं श्रीकृष्ण से 10 मैनेजमेंट टिप्स।
- मैनेजर या बॉस _भगवान श्रीकृष्ण ने कई लोगों से काम करवाया लेकिन मैनेजर या बॉस बनकर नहीं। भगवान श्रीकृष्ण की बात हर कोई मानता था क्योंकि वे किसी के बॉस नहीं थे और ना ही वे तानाशाह थे। वे जब द्वारिका में राजा थे तो उन्होंने कभी राजा जैसा व्यवहार नहीं किया। ये तो लोगों के मित्र, सलाहकार और सहयोगी थे। उन्होंने कभी भी अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया। टीम वर्क किया तभी तो पांडव जीत गए।
- व्यापक सोच : जीवन तो बहता पानी है। पल-प्रतिपल ज्ञान बदल रहा है लोग बदल रहे हैं उनकी सोच भी श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप जो भी कर रहे हैं, उसे लेकर आपका विजन व्यापक होना चाहिए। पहले अच्छी तरह से सोच और समझ लें फिर कोई कार्य या व्यवहार करें। दूर तक देखने और सोचने की आदत डालें व्यापक सोच का मतलब यह भी है कि क्रांतिकारी विचार रखते हुए किसी बंधी बंधाई लीक पर नहीं चले परिस्थिति के अनुसार प्रयोग करें, रिस्क उठाएं, अपनी भूमिका बदलें और सारथी तक भी बनने के लिए तैयार रहें।
- निष्काम कर्म करो : श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्म करना हमारे हाथ में है लेकिन उसका क्या परिणाम होगा यह हमारे हाथ में नहीं है। यदि आप 100 परसेंट कर्म नहीं करते हैं तो फिर 100 परसेंट फल की आशा भी न करें। जो व्यक्ति यह सोचकर कर्म करता है कि मुझे अपना पूरा 100 परसेंट देना है वही मनचाहा परिणाम भी पा सकता है। ऐसा तरीका निष्काम कर्म ही है।
- धर्म के साथ रहो _ जीवन में कितनी ही कठिनाइयां आए लेकिन आप धर्म का साथ न छोड़ें, क्योंकि हो सकता है कि अधर्म के साथ रहकर आप तात्कालिक लाभ प्राप्त कर सकते हो लेकिन जीवन के किसी भी मोड़ पर आपको इसका भुगतान करना ही होगा। क्योंकि श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं- हे अर्जुन तुझे देखने वाले आकाश में देवता भी है और राक्षस भी। लेकिन तू खुद को देख और समझ। खुद के समक्ष धर्मपरायण बन। यदि तू धर्म की रक्षा करेगा तो धर्म तेरी रक्षा करेगा।
- खुद को भी मोटिवेट करो _ भगवान श्रीकृष्ण पॉजिटिव एटिट्यूड अपनाकर अपने साथ के सभी लोगों को मोटिवेट करते रहते हैं और खुद भी इससे प्रेरित होते रहते हैं। वे लोगों को मित्र बनकर समझाते भी हैं, ज्ञान भी देते हैं और भाई या पिता बनकर जरूरत पड़ने पर डांटते भी हैं। ऐसे कई मौके आए जबकि उन्होंने अर्जुन, द्रौपदी और दुर्योधन को समझाया भी और डांटा भी । लेकिन उन्होंने कभी भी किसी का मोरल नहीं गिरने दिया। उन्होंने अपने शत्रुओं से भी बराबर का व्यवहार बनाए रखा।
- मानसिक नियंत्रण : कब कौनसी बात कहां कहनी और कहां नहीं कहनी है यह समझना भी बहुत जरूरी है। इसे कहते हैं। वाणी नियंत्रण उसी तरह शक, संदेह, अविश्वास, निराशा, क्रोध, लालच, भय और दुविधा पर भी नियंत्रण करना सिखना होगा। कुशल मैनेजमेंट के लिए मेंटल हेल्थ जरूरी है। गीता में श्रीकृष्ण ने इस तरह के तमाम दुर्गुणों से हमेशा बचने का उपदेश दिया है। मन, वचन और कर्म से एक बने रहो जो व्यक्ति अपनी बात पर कायम रहता है जीत उसका पीछा कभी नहीं छोड़ती। वह अपने हर कार्य में सफल होता है।
- सम्मान और आदर भगवान श्रीकृष्ण हर तरह से शक्तिशाली थे लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया। वे अपने गुरु माता पिता और बड़े भाई के साथ ही अपने से बड़े पुरुषों का आदर करते और उनका चरण स्पर्श करते थे। जो लोग अपने माता-पिता व गुरु का आदर करते हैं, वे प्रशंसा के पात्र बनते हैं। इसलिए सदैव बड़ों के आदर व सम्मान में हमेशा आगे रहना चाहिए।
- संकट का समय ही खुद को सिद्ध करने का समय : संकट के समय ही यह सिद्ध करने का होता है कि आप योग्य हो, काबिल हो। संकट चाहे खुद पर आया हो, मित्र पर आया हो या आपके संस्थान पर आपको उस समय ही डटककर मुकाबला करना होगा। संकट के समय पलायन करने से धर्म का भी त्याग हो जाता है।
- मास्टर स्ट्रेटजी : अगर पांडवों के पास भगवान कृष्ण की मास्टर स्ट्रेटजी ना होती तो पांडवों का युद्ध में जीतना मुश्किल था। इसलिए कोई भी कार्य करने के पूर्व उसकी एक वृहत्तर योजना बनाना जरूरी है। योजनाओं को अपडेट करते रहना भी जरूरी है। योजनाओं के बगैर कार्य ही नहीं जीवन भी असफल सिद्ध होता है।
- उद्देश्य सही है तो रास्ता कैसा भी हो : कहते हैं कि सीधे रास्ते से सब पाना आसान नहीं होता। ऐसे में धर्म यह कहता है कि यदि उद्देश्य सही है तो टेड़ा रास्ता भी अपनाया जा सकता है। खासतौर पर जबकि आपके सामने अधर्म का पलड़ा भारी हो, ऐसे में कूटनीति का रास्ता अपनाएं।