श्रीरामचरितमानस में शिवलिंगस्थापना

भगवान श्रीराम ने लंका अभियान के उद्देश्य से समस्त कपिसेना को आदेश दिया कि कुछ पहाड़ पर्वत समुद्र जल में डाल कर एक सेतु का निर्माण - करो, तब लंका जाने में सुविधा होगी। कपिवृन्द ने कार्यारम्भ किया । उस जगह की समतल शोभा देख कर श्रीराम ने कहा - यहाँ एक शिवलिंग की स्थापना करने की इच्छा मुझ में जगी है। बाद में दूर दूर रहने वाले ऋषिमुनियों के द्वारा शिवलिंग लाया गया और उद्दिष्ट स्थान पर स्थापित किया गया । तब श्रीराम ने स्वयं शिव का माहात्म्य बखान किया, उनकी पूजा की। आज वह लिंग रामेश्वर के रूप में प्रख्यात है । करिहउँ इहाँ संभु थापना । मोरे हृदय परम कलपना ॥ (श्रीरामचरितमानस, लंका काण्ड) भगवान वेदव्यासकृत स्कन्दपुराणोक्त 'पुरुषोत्त

    श्रीरामचरितमानस में शिवलिंगस्थापना

भगवान श्रीराम ने लंका अभियान के उद्देश्य से समस्त कपिसेना को आदेश दिया कि कुछ पहाड़ पर्वत समुद्र जल में डाल कर एक सेतु का निर्माण - करो, तब लंका जाने में सुविधा होगी। कपिवृन्द ने कार्यारम्भ किया । उस जगह की समतल शोभा देख कर श्रीराम ने कहा - यहाँ एक शिवलिंग की स्थापना करने की इच्छा मुझ में जगी है। बाद में दूर दूर रहने वाले ऋषिमुनियों के द्वारा शिवलिंग लाया गया और उद्दिष्ट स्थान पर स्थापित किया गया । तब श्रीराम ने स्वयं शिव का माहात्म्य बखान किया, उनकी पूजा की। आज वह लिंग रामेश्वर के रूप में प्रख्यात है ।

       करिहउँ इहाँ संभु थापना ।

         मोरे हृदय परम कलपना ॥

                    (श्रीरामचरितमानस, लंका काण्ड)

भगवान वेदव्यासकृत स्कन्दपुराणोक्त 'पुरुषोत्तम माहात्म्य' में कहा गया है कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डवों और यादवों के साथ पुरुषोत्तम धाम में पधार कर तीन दिन अवस्थान कर एक बिल या गर्त्त के सम्मुख बेल का फल रख कर शिवार्चन किया था । इससे मालूम पड़ता है कि केवल साधुसंत ही मूर्त वस्तु की पूजा नहीं करते, अपितु स्वयं भगवान भी ऐसा करते हैं

 

“बैल्वं फलं समादाय तत्रावाह्य त्रिलोचनम् । पूजयित्वा पुरारातिं तुष्टावान्धकनाशनम् ॥“

                                            ( स्कन्द १३ -२० )

अर्थ- तदनन्तर एक बिल्वफल लाकर त्रिपुर और अन्धक दैत्यनाशक त्रिलोचन का आवाहनपूर्वक यथाविधि पूजन करके भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी (शिवकी) स्तुति की ।