साक्षीगोपाल के कथाप्रसंग
श्रीचैतन्यचरितामृत में वर्णित साक्षीगोपाल के कथाप्रसंग पर विचार करें । एक बार की बात है, दक्षिण भारत के छोटे विप्र तथा बड़े विप्र तीर्थाटन में जाकर श्रीधाम (वृन्दावन) में पहुँचकर गोपाल के दर्शन करते समय बड़े विप्र ने प्रसन्नचित्त हो छोटे विप्र से कहा - "मैं प्रभु के सम्मुख यह वादा करता हूँ कि “मेरी कन्या का विवाह तुम्हारे साथ करवा दूँगा ।” जब वे अपने देश लौट आए तो कन्यादान का प्रसंग भूल गए और कहा क्या कहा था, वह मुझे बिलकुल याद नहीं है, अगर गोपाल स्वयं साक्ष्य प्रदान करेंगे तो मैं कन्यादान करूँगा।" )
श्रीचैतन्यचरितामृत में वर्णित साक्षीगोपाल के कथाप्रसंग पर विचार करें । एक बार की बात है, दक्षिण भारत के छोटे विप्र तथा बड़े विप्र तीर्थाटन में जाकर श्रीधाम (वृन्दावन) में पहुँचकर गोपाल के दर्शन करते समय बड़े विप्र ने प्रसन्नचित्त हो छोटे विप्र से कहा - "मैं प्रभु के सम्मुख यह वादा करता हूँ कि “मेरी कन्या का विवाह तुम्हारे साथ करवा दूँगा ।” जब वे अपने देश लौट आए तो कन्यादान का प्रसंग भूल गए और कहा क्या कहा था, वह मुझे बिलकुल याद नहीं है, अगर गोपाल स्वयं साक्ष्य प्रदान करेंगे तो मैं कन्यादान करूँगा।" यह सुनकर छोटे विप्र ने (श्रीधाम ) वृन्दावन जाकर गोपालजी से प्रार्थना की - हे प्रभो ! आप यदि कृपापूर्वक मेरे लिए साक्ष्य प्रदान करेंगे तो मेरी इज्जत बच जाएगी। गोपाल ने कहा- हे विप्र, क्या तुमने कभी सुना है कि प्रतिमा चल प्रचल हो साक्ष्य दे सकती है ? -
कृष्ण कहे प्रतिमा चले काहाँ नाई शुनि । विप्र कहे प्रतिमा हयाँ कह केने वाणी ॥ प्रतिमा ना हओ साक्षात् व्रजेन्द्रनन्दन । विप्रलागि कर तुमि अकार्य करण |
(चै.च.)
भगबान प्रसन्न हुए | छोटा बिप्र के साथ चलदिये | नाम पड़ गया साखीगोपाल |